भगवद गीता क्या है ? इसका महत्त्व और इसमें कुल कितने अध्याय और श्लोक की कुल संख्या कितनी है

भगवद गीता क्या है ? इसका महत्त्व और इसमें कुल कितने अध्याय और श्लोक की कुल संख्या कितनी है और गीता किसने और किसको सुने है किस कारन से सुने गयी है गीता उपदेश को

भगवद गीता क्या है ? इसका महत्त्व और इसमें कुल कितने अध्याय और श्लोक की कुल संख्या कितनी है
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भगवद गीता क्या है ? इसका महत्त्व और इसमें कुल कितने अध्याय और श्लोक की कुल संख्या कितनी है
भगवद गीता क्या है ? इसका महत्त्व और इसमें कुल कितने अध्याय और श्लोक की कुल संख्या कितनी है

भगवद गीता: एक आध्यात्मिक योद्धा की धारा

भारतीय साहित्य का अद्वितीय भव्य ग्रंथ, भगवद गीता, एक ऐसा धार्मिक ग्रंथ है जिसने अपनी अमिट गहराई और उच्चता के कारण लोगों को आकर्षित किया है। यह ग्रंथ महाभारत का एक भाग है और महाभारत के युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच हुई अविस्मरणीय संवाद का प्रतिफल है। भगवद गीता में अर्जुन का मानसिक उथल-पुथल, उसकी धार्मिक और नैतिक चिंताओं का संजीवनी वर्णन है और भगवान कृष्ण उसे धार्मिक जीवन के महत्त्वपूर्ण सिद्धांतों का उपदेश देते हैं।

भगवद गीता का एक महत्वपूर्ण श्लोक है:

श्री भगवान उवाच:

      यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
      अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥

इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को धर्म की स्थिति और अधर्म के प्रकारों के बारे में बताते हैं। उन्होंने कहा कि जब-जब धर्म का लोप होता है और अधर्म उच्च उत्पन्न होता है, तो मैं स्वयं रूप में प्रकट होता हूँ, जिसका उद्दीपन मुझे जरुरी मानकर होता है। यह श्लोक भगवद गीता का सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण श्लोकों में से एक है, जो धर्म और अधर्म के संघर्ष की दिशा में एक महत्वपूर्ण सिद्धांत प्रस्तुत करता है।

भगवद गीता का पहला श्लोक है:

धृतराष्ट्र उवाच:     

      धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः।

      मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय॥

इस श्लोक में महाभारत के प्रारंभिक संवाद का वर्णन किया गया है, जिसमें कौरवों और पाण्डवों के युद्ध के लिए तैयारी हो रही है। धृतराष्ट्र संजय से पूछते हैं कि कुरुक्षेत्र में धर्मयुद्ध के लिए तैयार होने वाले कौन-कौन से लोग हैं, और उनके पुत्रों ने क्या किया।

भगवद गीता का अंतिम श्लोक है:

 भगवान श्रीकृष्ण का उत्तर:

      इति ते ज्ञानं आख्यातं गुह्याद् गुह्यतरं मया।
      विमृश्यैतदशेषेण यथेच्छसि तथा कुरु॥

इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को उनके द्वारा दिये गए ज्ञान का सारांश और गुप्त रहस्यों का उपदेश देते हैं। उन्होंने अर्जुन से कहा कि वह इस ज्ञान को अच्छी तरह से विचार करें और फिर अपनी इच्छा के अनुसार कार्य करें।

गीता के महत्वपूर्ण विषय:

  1. कर्म योग: भगवद गीता का सबसे महत्वपूर्ण विषय है कर्म योग। इसमें भगवान का संदेश है कि हमें कर्तव्यों का पालन करते हुए भगवान की भक्ति में लगे रहना चाहिए, फल की चिंता न करें।

  2. भक्ति योग: यह ग्रंथ भक्ति योग का महत्व भी उजागर करता है, जिसमें भगवान की प्रेम से पूजा और सेवा का मार्ग बताया गया है।

  3. ज्ञान योग: गीता में ज्ञान योग का विस्तार भी है, जिसमें आत्मा की सत्य ज्ञान की विधि का वर्णन किया गया है।

  4. संख्या योग: इसमें शरीर और आत्मा का विवेचन किया गया है।

भगवद गीता का महत्व:

भगवद गीता का महत्व अत्यधिक है। यह ग्रंथ धर्म, दर्शन और नैतिकता के क्षेत्र में विशेष योगदान करता है। यहां कुछ महत्वपूर्ण कारण हैं:

  1. आध्यात्मिक विकास: भगवद गीता के अनुयायी इसके गहरे तत्वज्ञान से अपने आध्यात्मिक विकास को बढ़ाते हैं।

  2. नैतिक मार्गदर्शन: इसमें नैतिक विचारों और व्यवहारिक जीवन के नियमों का विवेचन किया जाता है, जो लोगों को अपने जीवन में नैतिक मूल्यों को समझने और उन पर आचरण करने के लिए प्रेरित करता है।

  3. जीवन के मुद्दे: भगवद गीता के द्वारा लोग अपने जीवन के विभिन्न मुद्दों का समाधान ढूंढते हैं और समस्याओं का समाधान प्राप्त करते हैं।

  4. आशा और विश्वास: गीता अपने अनुयायियों में आशा और विश्वास का विकास करता है। यह लोगों को नए उत्साह और दिशा की ओर प्रेरित करता है।

संक्षेप में:

भगवद गीता एक ऐसा ग्रंथ है जो न केवल एक धार्मिक ग्रंथ है, बल्कि एक जीवन दर्शन और दर्शनिक दृष्टिकोण का प्रतीक है। इस ग्रंथ में दिए गए ज्ञान और तत्वों का अध्ययन व्यक्ति को समृद्ध, सामाजिक और आध्यात्मिक जीवन की दिशा में मदद करता है। भगवद गीता का महत्व और प्रभाव आज भी समय के साथ बढ़ता है, और लोग इसे अपने जीवन के मार्गदर्शन के रूप में मानते हैं।

भगवत गीता में कुल कितने अध्याय है 

भगवद गीता में कुल 18 अध्याय हैं। प्रत्येक अध्याय में विभिन्न धार्मिक और आध्यात्मिक विषयों पर बातचीत की गई है। यह अध्याय आत्मा, ईश्वर, धर्म, कर्म, भक्ति, ज्ञान और समाज के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालते हैं। प्रत्येक अध्याय में अनुशासन, उपदेश और उत्तर के रूप में भगवान श्रीकृष्ण के उपदेश हैं, जो अर्जुन के धर्मसंकट को दूर करने के लिए उन्हें मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।

भगवत गीता में कुल कितने अश्लोक हैं |

भगवद गीता में कुल 700 अश्लोक हैं, जो 18 अध्यायों में वितरित हैं। ये अश्लोक भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच हुए संवाद का हिस्सा हैं और भगवान के उपदेश को संग्रहित करते हैं। हर अध्याय में विभिन्न विषयों पर चर्चा होती है और इन अश्लोकों के माध्यम से आध्यात्मिक ज्ञान, धर्म, कर्म और मोक्ष के विषय में उपदेश दिया गया है। भगवद गीता के अश्लोक हमें जीवन के मार्गदर्शन में मदद करते हैं और सच्चे धर्म का अनुसरण करने के लिए प्रेरित करते हैं। इन अश्लोकों की गहराई और उनका अद्वितीय तत्व भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण है, और ये आज भी मानवता के लिए एक महत्वपूर्ण आधार हैं।

भगवत गीता किसने  किसको कब और कहा सुनाया 

 भगवद गीता का संवाद महाभारत के युद्ध के समय हुआ था, जब भगवान श्रीकृष्ण अपने शिष्य अर्जुन को उसके रथ में स्थित होकर सुनाया था। यह उत्तराखंड के कुरुक्षेत्र में हुआ था, जहां महाभारत का महायुद्ध लड़ा जा रहा था। अर्जुन, अपने मित्रों और रिश्तेदारों के साथ उसके रथ में बैठा था, जब वह धर्म, कर्म और जीवन के उद्देश्य पर संशय में पड़ गया। उसके इस संशय को देखते हुए भगवान श्रीकृष्ण ने उसे अपने उपदेशों से प्रेरित किया और उसे भगवद गीता का उपदेश सुनाया। इसमें भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जीवन के विभिन्न पहलुओं पर बोध किया और उसे धर्मयुद्ध के लिए प्रेरित किया। यह गीता का महान उपदेश हमें आज भी जीवन के मार्ग का दिशा-निर्देश प्रदान करता है।