काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास बहुत प्राचीन है
ज्योतिर्लिंग: यहां पर एक ज्योतिर्लिंग स्थित है, जिसे शिवजी के रूप में पूजा जाता है। विश्वनाथ जी की मूर्ति: मंदिर में विश्वनाथ जी की मूर्ति भी है, जिसे श्रद्धालु दर्शन करते हैं। काशी विश्वनाथ मंदिर की गलियां: मंदिर के आस-पास की गलियां भी धार्मिक और ऐतिहासिक महत्वपूर्ण हैं। गंगा घाट: मंदिर के पास गंगा घाट है, जो श्रद्धालुओं के लिए पवित्र माना जाता है।
काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास बहुत प्राचीन है और यह भारत के वाराणसी शहर में स्थित है। यह मंदिर हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण तीर्थस्थलों में से एक है और यहां शिवजी को “विश्वनाथ” और “विश्वेश्वर” के नाम से पूजा जाता है, जिसका अर्थ है “ब्रह्मांड के स्वामी” ।
मंदिर का इतिहास:
- प्रारंभिक विश्वनाथ मंदिर: इसका नाम पहले “आदि विश्वेश्वर मंदिर” था, जो 1194 में गौरियों द्वारा नष्ट किया गया था, जब मुईज़ अल-दीन मुहम्मद इब्न साम ने भारत लौटकर जयचंद्र को चंदावर के पास कन्नौज में हराया और फिर काशी शहर को नष्ट कर दिया। थोड़े सालों में, उसकी जगह पर राजिया मस्जिद बनाई गई ।
- राजा मान सिंह और राजा तोड़र माल: अकबर के शासनकाल में, राजा मान सिंह ने मंदिर को पुनः बनवाया और राजा तोड़र माल ने इसकी सीमाएँ बढ़ाई ।
- अहिल्याबाई होलकर: 1780 में अहिल्याबाई होलकर ने वर्तमान मंदिर की नींव रखी ।
इस प्राचीन मंदिर का दर्शन करने से आत्मा को शांति मिलती है और यह शिवभक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल है।
मंदिर में कौन-कौन सी प्रमुख चीजें हैं?
काशी विश्वनाथ मंदिर में कुछ प्रमुख चीजें हैं:
- ज्योतिर्लिंग: यहां पर एक ज्योतिर्लिंग स्थित है, जिसे शिवजी के रूप में पूजा जाता है।
- विश्वनाथ जी की मूर्ति: मंदिर में विश्वनाथ जी की मूर्ति भी है, जिसे श्रद्धालु दर्शन करते हैं।
- काशी विश्वनाथ मंदिर की गलियां: मंदिर के आस-पास की गलियां भी धार्मिक और ऐतिहासिक महत्वपूर्ण हैं।
- गंगा घाट: मंदिर के पास गंगा घाट है, जो श्रद्धालुओं के लिए पवित्र माना जाता है।
यहां आने वाले श्रद्धालु अपनी आत्मा को शांति पाने के लिए इन चीजों का दर्शन करते हैं।
मंदिर में 'लोहा' (Lingam) का महत्व
काशी विश्वनाथ मंदिर में लिंगम का महत्व अत्यधिक है। यह शिवजी के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है। लिंगम शिवजी की शक्ति, सृष्टि, स्थिति और संहार को प्रतिस्थापित करता है। यह शिवभक्तों के लिए आध्यात्मिक और धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है।
संकटमोचन हनुमान मंदिर,
वाराणसी, उत्तर प्रदेश, भारत का एक प्रमुख हिन्दू मंदिर है जो हनुमान जी को समर्पित है। यह मंदिर गोस्वामी तुलसीदास द्वारा 16वीं सदी के आरंभ में स्थापित किया गया था और यह अस्सी नदी के किनारे स्थित है .
मंदिर का नाम “संकटमोचन” है, जिसका अर्थ है “सभी संकटों से मुक्ति देने वाला”। यह मंदिर भगवान हनुमान के लिए एक पवित्र स्थल है और हिन्दुओं के विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक त्योहारों के लिए मुख्य स्थल है।
मंदिर की विशेषताएँ:
- मंदिर में भगवान हनुमान के लिए प्रसाद के रूप में खास मिठे “बेसन के लड्डू” बेचे जाते हैं, जिन्हें भक्त आनंद लेते हैं।
- मूल देवता की मूर्ति को एक सुंदर गेंदा फूलों की माला से सजाया जाता है।
- यह मंदिर एक अद्वितीय विशेषता रखता है क्योंकि यहां भगवान हनुमान अपने प्रभु राम के सामने हैं, जिन्हें उन्होंने निष्कलंक भक्ति के साथ पूजा किया था।
मंदिर का इतिहास:
- मान्यता है कि मंदिर उसी स्थान पर बना है जहां तुलसीदास ने हनुमान की दर्शनीय दृष्टि की थी ।
- गोस्वामी तुलसीदास ने इस मंदिर की स्थापना की थी, जो रामचरितमानस के लेखक थे। रामचरितमानस एक प्रसिद्ध रामायण की कथा का हिंदी संस्करण है |
वाराणसी में अनेक प्रमुख घाट हैं
वाराणसी में अनेक प्रमुख घाट हैं, जो गंगा नदी के किनारे स्थित हैं। यहां पर 84 घाट हैं, जिनमें से अधिकांश नहाने और पूजा के घाट हैं, जबकि दो घाट, मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र, केवल शवसंस्कार के लिए उपयोग होते हैं 12.
वाराणसी के घाटों का इतिहास प्राचीन काल में जाता है और ये नदी के किनारे स्थित हैं। यहां कुछ प्रमुख घाटों का उल्लेख है:
- अस्सी घाट: यह घाट वाराणसी के घाटों में पहला है और यहां पर प्रसिद्ध गंगा आरती हर शाम होती है।
- मणिकर्णिका घाट: यह घाट केवल शवसंस्कार के लिए उपयोग होता है।
- राजा हरिश्चंद्र घाट: यह भी शवसंस्कार के लिए उपयोग होता है और इसका नाम राजा हरिश्चंद्र के नाम पर है।
वाराणसी के घाटों पर सुबह की गंगा नदी पर नाव यात्रा भी एक लोकप्रिय आकर्षण है।
1. अस्सी घाट:
अस्सी घाट वाराणसी, उत्तर प्रदेश, भारत में स्थित है और यह एक प्रमुख घाट है जो मोक्ष की प्राप्ति के लिए प्रसिद्ध है। यह घाट अंतिम संस्कार के लिए जाने वाले लोगों के लिए महत्वपूर्ण है।
राजा हरिश्चंद्र का नाम इस घाट के नाम पर रखा गया है। राजा हरिश्चंद्र एक प्रसिद्ध सूर्यवंशी राजा थे जो सत्यनिष्ठा के लिए प्रसिद्ध थे। उन्होंने अपनी ईमानदारी और सत्यनिष्ठा के लिए अद्वितीय कठिनाइयों का सामना किया।
अस्सी घाट एक पवित्र स्थल है जहां लोग अपने पूर्वजों की याद में अंतिम संस्कार करते हैं। यहां पर भगवान विश्वनाथ के मंदिर भी स्थित हैं, जो वाराणसी के प्रमुख शिव मंदिरों में से एक हैं।
अस्सी घाट का इतिहास प्राचीन काल में देखा जा सकता है। यह घाट राजा हरिश्चंद्र के नाम पर रखा गया था, जो अपनी सत्यनिष्ठा के लिए प्रसिद्ध थे। उन्होंने अपना वादा पूरा करने के लिए खुद को और अपने परिवार को बेच दिया था।
इस घाट का नाम राजा हरिश्चंद्र के नाम पर पड़ा है और यह एक महत्वपूर्ण स्थल है
2. मणिकर्णिका घाट
मणिकर्णिका घाट भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में वाराणसी शहर के गंगा नदी के तट पर स्थित है। यह एक प्रसिद्ध हिंदू श्मशान स्थल है और वाराणसी के सबसे पुराने और महत्वपूर्ण घाटों में से एक माना जाता है।
मान्यता के अनुसार, माता पार्वती जी के कर्ण फूल यहाँ एक कुंड में गिर गया था, जिसे ढूढ़ने का काम भगवान शंकर जी द्वारा किया गया था। इस कारण से इस स्थान का नाम मणिकर्णिका पड़ गया। दूसरी मान्यता के अनुसार भगवान शंकर जी द्वारा माता सती जी के पार्थिव शरीर का अग्नि संस्कार किया गया था, जिस कारण इसे महाशमशान भी कहते हैं। आज भी यहाँ दाह संस्कार होते हैं।
नजदीक में काशी की आद्या शक्ति पीठ विशालाक्षी जी का मंदिर विराजमान है। यहाँ आने वाले मृत शरीर के कानों में तारक मंत्र का उपदेश दिया जाता है और मोक्ष प्रदान किया जाता है।
रंगभरी एकादशी (आमलकी) के दूसरे दिन बाबा विश्वनाथ जी के गौना होता है। इस दिन बाबा मसान होली खेलते हैं, जो कि काशी में मणिकर्णिका और हरिश्चन्द्र धाट के अतिरिक्त पूरे विश्व में अन्यत्र और कहीं नहीं मनाया जाता है12.
मणिकर्णिका घाट का निर्माण देवी अहिल्याबाई होलकर ने करवाया था। यह सबसे प्रमुख घाट है और यहाँ दाह संस्कार से मोक्ष की
3. राजा हरिश्चंद्र घाट
राजा हरिश्चंद्र घाट वाराणसी, उत्तर प्रदेश, भारत में स्थित है और यह एक प्रमुख घाट है जो मोक्ष की प्राप्ति के लिए प्रसिद्ध है। यह घाट अंतिम संस्कार के लिए जाने वाले लोगों के लिए महत्वपूर्ण है।
राजा हरिश्चंद्र का नाम इस घाट के नाम पर रखा गया है। राजा हरिश्चंद्र एक प्रसिद्ध सूर्यवंशी राजा थे जो सत्यनिष्ठा के लिए प्रसिद्ध थे। उन्होंने अपनी ईमानदारी और सत्यनिष्ठा के लिए अद्वितीय कठिनाइयों का सामना किया।
राजा हरिश्चंद्र घाट एक पवित्र स्थल है जहां लोग अपने पूर्वजों की याद में अंतिम संस्कार करते हैं। यहां पर भगवान विश्वनाथ के मंदिर भी स्थित हैं, जो वाराणसी के प्रमुख शिव मंदिरों में से एक हैं।
राजा हरिश्चंद्र घाट का इतिहास प्राचीन काल में देखा जा सकता है। यह घाट राजा हरिश्चंद्र के नाम पर रखा गया था, जो अपनी सत्यनिष्ठा के लिए प्रसिद्ध थे। उन्होंने अपना वादा पूरा करने के लिए अपनी पत्नी और पुत्र को ब्राह्मण विश्वामित्र को बेच दिया था। विश्वामित्र ने यज्ञ के लिए राजा के राज्य, धन और परिवार की मांग की थी। राजा हरिश्चंद्र ने अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए खुद को और अपने परिवार को बेच दिया था।
इस घाट का नाम राजा हरिश्चंद्र के नाम पर पड़ा है और यह एक महत्वपूर्ण स्थल है
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